इन दिनों सपिंड विवाह की चर्चा हर जगह हो रही है  और ये मामला अब हाई कोर्ट  पहुंच गया है आइये जानते है क्या है पूरा  मामला

३ भारतीय संविधान के अनुसार, देश की जनता को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण अधिकार 'शादी' है, जो व्यक्ति को स्वतंत्रता में जीने और अपने जीवनसाथी का चयन करने का हक प्रदान करता है।"

इसमें किसी धर्म,जाती ,अन्य किसी भी तरह का भेदभाव  बाधा नहीं बनता है परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसे भी रिश्ते है जिनमे शादी नहीं हो सकती है और ऐसे विवाह को ही सपिंड विवाह  कहते है ल

सपिंड विवाह यानि दो ऐसे लोग  विवाह नहीं में सकते जो   एक ही कुल या खानदान के हो और  वे लोग जो एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं।

कानून के में इसके लिए कुछ नियम बनाये गए है जो धारा 3(f)(ii) के तहत, आते है  यदि दो व्यक्तियों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज है और उनका रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आता है

हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक (भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी) किसी से शादी नहीं कर सकता है।"

पिता की तरफ से यह प्रतिबंध पांच पीढ़ियों तक लागू होती है, यानि कि आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते।"

हाई कोर्ट ने यह पाबंदी इसलिए लगाई गई है ताकि करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा होने से रोकी जा सके।"