स्वाति मालीवाल: क्या स्वाति मालीवाल की हुई है जीत,पुलिस ने पेश किया 30 पन्नो का चार्टशीट ,कैसे फंसे बिभव कुमार

स्वाति मालीवाल

स्वाति मालीवाल: 12 जुलाई को दिल्ली हाई ने बिभव कुमार की याचिका को खारिज कर दिया था वंही दिल्ली पुलिस ने उनकी रिहाई पर जांच प्रभावित होने का हवाला दिया था। उसने अदलात को बताया था की 16 जुलाई या इससे उससे पहले चार्टशीट पेश कर दी जाएगी

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स्वाति मालीवाल Case

आम आदमी पार्टी (आप) की राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल से मारपीट के मामले में दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को तीस हजारी कोर्ट में 300 पन्नों की चार्जशीट दाखिल कर दी है। इस चार्जशीट में मुख्य आरोपी के रूप में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगी बिभव कुमार का नाम आया है। बिभव कुमार वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं।

बताया गया है कि कुमार के खिलाफ 13 मई को केजरीवाल के आधिकारिक आवास में स्वाति मालीवाल से मारपीट का आरोप है, और उन्हें 18 मई को गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में, उनके खिलाफ 16 मई को आपराधिक धमकी देने, महिला पर हमला करने या उसका चीरहरण करने की मंशा से आपराधिक बल का प्रयोग, गैर-इरादतन हत्या की कोशिश सहित तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकता दर्ज की गई थी।

इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में बिभव कुमार को बीते 12 जुलाई को जमानत देने से मना कर दिया था। जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कुमार की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि वह ‘काफी प्रभावी’ व्यक्ति हैं और उन्हें राहत देने के लिए कोई उचित आधार नहीं बनता। अदालत ने कहा था कि आरोपों की प्रकृति और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका को देखते हुए इस स्तर पर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं बनता। अतः, फैसला यह हुआ कि कुमार की जमानत अर्जी खारिज की जाती है।

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दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

जज ने कहा था कि इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने से वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं या सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। अदालत ने कहा था कि आरोपों की प्रकृति और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका को देखते हुए इस स्तर पर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं बनता। इसके बाद जज ने फैसला दिया, ‘अर्जी खारिज की जाती है.’

बिभव कुमार के मामले में पृष्ठभूमि

बिभव कुमार के खिलाफ आपराधिक आरोपों का विवरण दिया गया है, जिनमें महिला पर हमला करने के आरोप शामिल हैं। उन्हें गिरफ्तार किया गया था और उनकी जमानत अर्जी को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

अदालत ने आठ पन्नो के आदेश में कहा था की मौजूद सांसद द्वारा मुख्यमंत्री आवास में मारपीट के लगाएं गए आरोप पर केवल इसलिए अविश्वाश नहीं किया जा सकता की प्राथमिकी करने में देरी हुई है ,क्योकि उसके बाद की घटनाओ से प्रतिबिंबित होता है की शिकायतकर्ता बिना उकसावे के हुआ हमले का सामना करने के बाद बदहवास हुई थी ,साथ ही अदालत ने यह भी कहा की यह अनुमान लगाना बेतुका हो सकता है की आरोपी को झूठा फसाया गया है क्योकि स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता के पास याचिकाकर्ता को फ़साने को कोई मकसद नहीं था

“हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था ,विशिस्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखने हुआ इस स्तर यहआरोप अनुमान लगाना बेतुका हो सकता है की याचिकाकर्ता को झूठा फंसाया गया है और उनपर लगे आरोप बेबुनियाद है ,क्योकि स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता के पास याचिकाकर्ता को फ़साने का कोई मकसद नहीं था “

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